बुधवार, 30 मई 2018

मीरा चरित्र - भाग २०

॥जय श्री राम॥

॥ मीरा चरित्र - भाग २०

क्रमशः

मीरा ससुराल में समय समय पर बीच में सबके चरण स्पर्श कर आती, पर कहीं अधिक देर तक न ठहर पाती क्योंकि इधर ठाकुर जी के भोग का समय हो जाता ।फिर सन्धया में वह जोशी जी से शास्त्र -पुराण सुनती । महलों में मीरा के सबसे अलग थलग रहने पर आलोचना होती , पर अगर कोई मीरा को स्वयं मिलने पधारता ,तो वह अतिशय स्नेह और अपनत्व से उनकी आवभगत करती ।

श्रावण आया । तीज का त्योहार । चित्तौड़गढ़ के महलों में शाम होते ही त्यौहार की हलचल आरम्भ हो गई । सुन्दर झूला डाला गया । पूरा परिवार एक ही स्थान पर एकत्रित हुआ । बारी बारी से सब जोड़े से झूले पर बैठते , और सकुचाते ,लजाते एक दूसरे का नाम लेते ।

भोजराज और मीरा की भी क्रम से बारी आई । महाराणा और बड़े लोग भोजराज का संकोच देख थोड़ा पीछे हट गये । भाई रत्नसिंह ने आग्रह किया , यदि आपने विलम्ब किया तो मैं उतरने नहीं दूँगा । शीघ्र बता दीजिए भाभीसा का नाम !

मेड़तिया घर री थाती मीराँ आभ रो फूल (आकाश का फूल अर्थात ऐसा पुष्प जो स्वयं में दिव्य और सुन्दर तो हो पर अप्राप्य हो ।)
बस अब तो ?
रत्नसिंह भाई के शब्दों पर विचार ही करते रह गये ।मीरा को स्त्रियों ने घेरकर पति का नाम पूछा तो उसने मुस्कुराते ,लजाते हुए बताया
राजा है नंदरायजी जाँको गोकुल गाँम ।
जमना तट रो बास है गिरधर प्यारो नाम ॥

यह क्या कहा आपने ? हम तो कुँवरसा का नाम पूछ रही है ।

इनका नाम तो भोजराज है ।बस, अब मैं जाऊँ ? मीरा अपने महल की तरफ चल पड़ी ।
उसके मन में अलग सी तरंग उठ रही थी । नन्हीं नन्हीं बूँदे पड़ने लगी ।वह गुनगुनाने लगी..

हिडोंरो पड़यो कदम की डाल,
म्हाँने झोटा दे नंदलाल ॥

भक्तों के श्रावण का भावरस व्यवहारिक जगत से कितना अलग होता है ।उन्हें प्रकृति की प्रत्येक क्रिया में ठाकुर का ही कोई संकेत दिखाई देता है ।दूर कहीं पपीहा बोला तो मीरा को लगा मानो वह  पिया पिया बोल वह उसको चिढ़ा रहा हो ।पिया शब्द सुनते ही जैसे आकाश में ही नहीं उसके ह्रदय में भी दामिनी लहरा गई

पपीहरा काहे मचावत शोर ।
पिया पिया बोले जिया जरावत मोर॥
अंबवा की डार कोयलिया बोले रहि रहि बोले मोर।
नदी किनारे सारस बोल्यो मैं जाणी पिया मोर॥
मेहा बरसे बिजली चमके बादल की घनघोर ।
मीरा के प्रभु वेेग दरसदो मोहन चित्त के चोर ॥

वर्षा की फुहार में दासियों के संग मीरा भीगती महल पहुँची ।उसके ह्रदय में आज गिरधर के आने की आस सी जग रही है ।वे कक्ष में आकर अपने प्राणाराध्य के सम्मुख बैठ गाने लगी .

बरसे बूँदिया सावन की ,
सावन की मनभावन की ।
सावन में उमग्यो मेरो मनवा,
भनक सुनी हरि आवन की ।
उमड़ घुमड़ चहुँ दिसि से आयो,
दामण दमके झर लावन की॥
नान्हीं नान्हीं बूँदन मेहा बरसै,
सीतल पवन सोहावन की ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर ,
आनँद मंगल गावन की ॥

श्रावण की मंगल फुहार ने प्रियतम के आगमन की सुगन्ध चारों दिशाओं में व्यापक कर दी ।मीरा को क्षण क्षण प्राणनाथ के आने का आभास होता -वह प्रत्येक आहट पर चौंक उठती ।वह गिरधर के समक्ष बैठे फिर गाने लगी .

सुनो हो मैं हरि आवन की अवाज।
महल चढ़ चढ़ जोऊँ मेरी सजनी,
कब आवै महाराज ।
सुनो हो मैं हरि आवन की अवाज॥
दादर मोर पपइया बोलै ,
कोयल मधुरे साज ।
उमँग्यो इंद्र चहूँ दिसि बरसै,
दामणि छोड़ी लाज ॥
धरती रूप नवा-नवा धरिया,
इंद्र मिलण के काज ।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी,
बेग मिलो सिरताज॥

भजन पूरा करके मीरा ने जैसे ही आँखें उघाड़ी , वह हर्ष से बावली हो उठी।सम्मुख चौकी पर श्यामसुन्दर बैठे उसकी ओर देखते हुये मंद मंद मुस्कुरा रहे थे ।मीरा की पलकें जैसे झपकना भूल गई ।कुछ क्षण के लिए देह भी जड़ हो गई।फिर हाथ बढ़ा कर चरण पर रखा यह जानने के लिए कि कहीं यह स्वप्न तो नहीं ?

उसके हाथ पर एक अरूण करतल आ गया । उस स्पर्श . में मीरा जगत को ही भूल गई । बाईसा हुकम !मंगला ने एकदम प्रवेश किया तो स्वामिनी को यूँ किसी से बात करते ठिठक गई ।

मीरा ने पलकें उठाकर उसकी ओर देखा । मंगला ! आज प्रभु पधारे है ।जीमण (भोजन ) की तैयारी कर ।चौसर भी यही ले आ ।तू महाराज कुमार को भी निवेदन कर आ ।

मीरा की हर्ष-विह्वल दशा देखकर मंगला प्रसन्न भी हुई और चकित भी ।उसने शीघ्रता से दासियों में संदेश प्रसारित कर दिया ।घड़ी भर में तो मीरा के महल में गाने -बजाने की धूम मच गई ।चौक में दासियों को नाचते देख भोजराज को आश्चर्य हुआ ।

मंगला से पूछने पर वह बोली , कुंवरसा ! आज प्रभु पधारे है ।

भोजराज चकित से गिरधर गोपाल के कक्ष की ओर मुड़ गये ।वहां द्वार से ही मीरा की प्रेम-हर्ष-विह्वल दशा दर्शन कर वह स्तम्भित से हो गये ।मीरा किसी से हँसते हुये बात कर र ही थी-  बड़ी कृपा ..की प्रभु ..आप पधारे ..मेरी तो आँखें पथरा गई थी प्रतीक्षा में ।

भोजराज सोच रहे थे , प्रभु आये है, अहोभाग्य ! पर हाय! मुझे क्यों नहीं दर्शन नहीं हो रहे ?
मीरा की दृष्टि उनपर पड़ी ।
पधारिये महाराजकुमार ! देखिए , मेरे स्वामी आये है ।ये है द्वारिकाधीश , मेरे पति ।और स्वामी , यह है चित्तौड़गढ़ के महाराजकुमार ,भोजराज , मेरे सखा ।

मुझे तो यहाँ कोई दिखाई नहीं दे रहा । भोजराज ने सकुचाते हुए कहा ।
मीरा फिर हँसते हुये बोली आप पधारे ! ये फरमा रहे है कि आपको अभी दर्शन होने में समय है । भोजराज असमंजस में कुछ क्षण खड़े रहे फिर अपने शयनकक्ष में चले गये ।मीरा गाने लगी

आज तो राठौड़ीजी महलाँ रंग छायो।
आज तो मेड़तणीजी के महलाँ रंग छायो।
कोटिक भानु हुवौ प्रकाश जाणे के गिरधर आया॥
सुर नर मुनिजन ध्यान धरत हैं वेद पुराणन गाया
मीरा के प्रभु गिरधर नागर घर बैठयौं पिय पाया॥

नमो राघवाय