नमो राघवाये,
आज के इस सत्र में हम आपको बताने जा रहे है कुछ सेवा अपराधों के बारे में। सेवा अपराध, वे अपराध होते है जिन्हें हम जाने-अनजाने में एवं भूलवश करते रहते है जिससे हमारी सेवा दूषित हो जाती है एवं हमें यथोचित फल की प्राप्ति नही होती।
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार,
सेवापराध बत्तीस प्रकार के माने गये हैं —
१- सवारी पर चढक़र अथवा पैरों में खड़ाऊँ पहनकर श्रीभगवान् के मन्दिर में जाना।
२- रथयात्रा, जन्माष्टमी आदि उत्सवों का न करना या उनके दर्शन न करना।
३- श्रीमूर्ति के दर्शन करके प्रणाम न करना।
४- अशुचि-अवस्था में दर्शन करना।
५- एक हाथ से प्रणाम करना।
६- परिक्रमा करते समय भगवान् के सामने आकर कुछ न रुककर फिर परिक्रमा करना अथवा केवल सामने ही परिक्रमा करते रहना।
७- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने पैर पसार कर बैठना।
८- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने दोनों घुटनों को ऊँचा करके उनको हाथों से लपेटकर बैठ जाना।
९- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने सोना।
१०- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने भोजन करना।
११- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने झूठ बोलना।
१२- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने जोर से बोलना।
१३- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने आपस में बातचीत करना।
१४- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने चिल्लाना।
१५- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने कलह करना।
१६- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने किसी को पीड़ा देना।
१७- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने किसी पर अनुग्रह करना।
१८- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने किसी को निष्ठुर वचन बोलना।
१९- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने कम्बल से सारा शरीर ढक लेना।
२०- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने दूसरे की निन्दा करना।
२१- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने दूसरे की स्तुति करना।
२२- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने अश्लील शब्द बोलना।
२३- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने अधोवायु का त्याग करना।
२४- शक्ति रहते हुए भी गौण अर्थात् सामान्य उपचारों से भगवान् की सेवा-पूजा करना।
२५- श्रीभगवान् को निवेदित किये बिना किसी भी वस्तु का खाना-पीना।
२६- जिस ऋतु में जो फल हो, उसे सबसे पहले श्रीभगवान् को न चढ़ाना।
२७- किसी शाक या फलादि के अगले भाग को तोडक़र भगवान् के व्यञ्जनादि के लिये देना।
२८- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह को पीठ देकर बैठना।
२९- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने दूसरे किसी को भी प्रणाम करना।
३०- गुरुदेव की अभ्यर्थना, कुशल-प्रश्र और उनका स्तवन न करना।
३१- अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना।
३२- किसी भी देवता की निन्दा करना।
इस प्रकार,
इन सेवा अपराधों से बचकर हम सहजता से भगवत्कृपा प्राप्त कर सकते है।
आपका मित्र
अधम शिरोमणि
आज के इस सत्र में हम आपको बताने जा रहे है कुछ सेवा अपराधों के बारे में। सेवा अपराध, वे अपराध होते है जिन्हें हम जाने-अनजाने में एवं भूलवश करते रहते है जिससे हमारी सेवा दूषित हो जाती है एवं हमें यथोचित फल की प्राप्ति नही होती।
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार,
सेवापराध बत्तीस प्रकार के माने गये हैं —
१- सवारी पर चढक़र अथवा पैरों में खड़ाऊँ पहनकर श्रीभगवान् के मन्दिर में जाना।
२- रथयात्रा, जन्माष्टमी आदि उत्सवों का न करना या उनके दर्शन न करना।
३- श्रीमूर्ति के दर्शन करके प्रणाम न करना।
४- अशुचि-अवस्था में दर्शन करना।
५- एक हाथ से प्रणाम करना।
६- परिक्रमा करते समय भगवान् के सामने आकर कुछ न रुककर फिर परिक्रमा करना अथवा केवल सामने ही परिक्रमा करते रहना।
७- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने पैर पसार कर बैठना।
८- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने दोनों घुटनों को ऊँचा करके उनको हाथों से लपेटकर बैठ जाना।
९- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने सोना।
१०- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने भोजन करना।
११- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने झूठ बोलना।
१२- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने जोर से बोलना।
१३- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने आपस में बातचीत करना।
१४- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने चिल्लाना।
१५- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने कलह करना।
१६- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने किसी को पीड़ा देना।
१७- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने किसी पर अनुग्रह करना।
१८- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने किसी को निष्ठुर वचन बोलना।
१९- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने कम्बल से सारा शरीर ढक लेना।
२०- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने दूसरे की निन्दा करना।
२१- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने दूसरे की स्तुति करना।
२२- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने अश्लील शब्द बोलना।
२३- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने अधोवायु का त्याग करना।
२४- शक्ति रहते हुए भी गौण अर्थात् सामान्य उपचारों से भगवान् की सेवा-पूजा करना।
२५- श्रीभगवान् को निवेदित किये बिना किसी भी वस्तु का खाना-पीना।
२६- जिस ऋतु में जो फल हो, उसे सबसे पहले श्रीभगवान् को न चढ़ाना।
२७- किसी शाक या फलादि के अगले भाग को तोडक़र भगवान् के व्यञ्जनादि के लिये देना।
२८- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह को पीठ देकर बैठना।
२९- श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने दूसरे किसी को भी प्रणाम करना।
३०- गुरुदेव की अभ्यर्थना, कुशल-प्रश्र और उनका स्तवन न करना।
३१- अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना।
३२- किसी भी देवता की निन्दा करना।
इस प्रकार,
इन सेवा अपराधों से बचकर हम सहजता से भगवत्कृपा प्राप्त कर सकते है।
आपका मित्र
अधम शिरोमणि