शनिवार, 16 सितंबर 2017

मीरा चरित्र - भाग २

॥जय श्री राम॥

कृपण के धन की भाँति मीरा ठाकुर जी को अपने से चिपकाये माँ के कक्ष में आ गई वहाँ एक झरोखे में लकड़ी की चौकी रख उस पर अपनी नई ओढ़नी बिछा ठाकुर जी को विराजमान कर दिया । थोड़ी दूर बैठ उन्हें निहारने लगी ।रह रह कर आँखों से आँसू झरने लगे ।

आज की इस उपलब्धि के आगे सारा जगत तुच्छ हो गया ।जो अब तक अपने थे वे सब पराये हो गये और आज आया हुआ यह मुस्कुराता हुआ चेहरा ऐसा अपना हुआ जैसा अब तक कोई न था ।सारी हंसी खुशी और खेल तमाशे सब कुछ इन पर न्यौछावर हो गया ह्रदय में मानों उत्साह उफन पड़ा कि ऐसा क्या करूँ, जिससे यह प्रसन्न हो ।

अहा, कैसे देख रहा है मेरी ओर ? अरे मुझसे भूल हो गई ।तुम तो भगवान हो और मैं आपसे तू तुम कर बात कर गई ।आप कितने अच्छे हैं जो स्वयं कृपा कर उस संत से मेरे पास चले आये ।मुझसे कोई भूल हो जाये तो आप रूठना नहीं , बस बता देना ।अच्छा बताओ उन महात्मा की याद तो नहीं आ रही -वह तो तुम्हें मुझे देते रो ही पड़े थे ।मैं तुम्हें अच्छे से रखूँगी- स्नान करवाऊँगी, सुलाऊँगी और ऐसे सजाऊँगी कि सब देखते ही रह जायेंगे ।मैं बाबोसा को कह कर तुम्हारे लिए सुंदर पलंग, तकिये, गद्दी ,और बढ़िया वागे (पोशाक) भी बनवा दूँगी । फिर कभी मैं तुम्हें फुलवारी में और कभी यहाँ के मन्दिर चारभुजानाथ के दर्शन को ले चलूँगी ।वे तो सदा ऐसे सजे रहते है जैसे अभीअभी बींद (दूल्हा ) बने हो ।

मीरा ने अपने बाल सरल ह्रदय से कितनी ही बातें ठाकुर का दिल लगाने के लिए कर डाली ।न तो उसे कुछ खाने की सुध थीं और न किसी और काम में मन लगता था ।माँ ने ठाकुर जी को देखा तो बोली ,क्या अपने ठाकुर जी को भी भूखा रखेगी? चल उठ भोग लगा और फिर तू भी प्रसाद पा ।
मीरा: अरे हाँ, यह बात तो मैं भूल ही गई ।

फिर उसने भोग की सब व्यवस्था की । दूदा जी का हाथ पकड़ उन्हें अपने ठाकुर जी के दर्शन के लिए लाते मीरा ने उन्हें सब बताया ।
मीरा: बाबोसा उन्होंने स्वयं मुझे ठाकुर जी दिए और कहा कि स्वप्न में ठाकुर जी ने कहा कि अब मैं मीरा के पास ही रहूँगा ।
दूदाजी ने दर्शन कर प्रणाम किया तो बोले , भगवान को लकड़ी की चौकी पर क्यों ?मैं आज ही चाँदी का सिंहासन मंगवा दूंगा।
मीरा: हाँ बाबोसा ।और मखमल की गादी तकिये, चाँदी के बर्तन ,वागे और चन्दन का हिंडोला भी ।
दूदाजी : अवश्य बेटा ।सब सांझ तक आ जायेगा ।
मीरा: पर बाबोसा , मैं उन महात्मा से ठाकुर जी का नाम पूछना भूल गई ।
दूदाजी :मनुष्य के तो एक नाम होता है ।पर भगवान के जैसे गुण अनन्त है वैसे उनके नाम भी । तुम्हें जो नाम प्रिय लगे , चुन ले ।
मीरा: हाँ आप नाम लीजिए ।
दूदाजी : ठीक है ।कृष्ण , गोविंद , गोपाल , माधव, केशव, मनमोहन , गिरधर.
बस, बस बाबोसा ।मीरा उतावली हो बोली-यह गिरधर नाम सबसे अच्छा है ।इस नाम का अर्थ क्या है?
दूदाजी ने अत्यंत स्नेह से ठाकुर जी की गिरिराज धारण करने की लीला सुनाई ।बस तभी से इनका नाम हुआ गिरधर।
मीरा भाव विभोर हो मूर्छित हो गई ।मीरा के यूँ अचेत होने से माँ कुछ व्याकुल सी गई और उन्होंने अपनी चिन्ता व्यक्त करते हुए सब बात रतन सिंह जी को बताई ।

वीर कुंवरी चाहती थी कि मीरा महल में और राजकुमारियों की तरह शस्त्राभ्यास , राजनीति , घुड़सवारी और घर गृहस्थी के कार्य सीखे ताकि वह ससुराल में जा कर प्रत्येक परिस्थिति का सामना कर सके । पर इधर दूदा जी के संरक्षण में मीरा ने योग और संगीत की शिक्षा प्रारम्भ करदी । मीरा का झुकाव ठाकुर पूजा में दिन प्रतिदिन बढ़ता देख माँ को स्वाभाविक चिन्ता होती ।
मीरा को पूजा और शिक्षा के बाद जितना अवकाश मिलता वह दूदाजी के साथ बैठ श्री गदाधर जोशी जी से श्री मदभागवत सुनती ।आने वाले प्रत्येक संत का सत्संग लाभ लेती ।उसके भक्तियुक्त प्रश्नों को सुनकर सब मीरा की प्रतिभा से आश्चर्यचकित हो जाते ।माँ को मीरा का यूँ संतो से बात करना उनके समक्ष भजन गाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था पर दूदाजी जी की लाडली मीरा को कुछ कहते भी नहीं बनता था ।दूदाजी की छत्रछाया में मीरा की भक्ति बढ़ने लगी ।

वृंदावन से पधारे बाबा बिहारीदास जी से मीरा की नियमित संगीत शिक्षा भी प्रारम्भ हो गई ।रनिवास में यही चर्चा होती- अहा , इस रूप गुण की खान को अन्नदाता हुकम न जाने क्यों साधु बना रहे है ? एक दिन मीरा दूदाजी से बोली , बाबोसा मुझे अपने गिरधर के लिए अलग कक्ष चाहिए , माँ के महल में छोरे  छोरी मिलकर उनसे मिलकर छेड़छाड़ करते है । दूदाजी ने अपनी लाडली के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए कहा , हाँ बेटी क्यों नहीं । और दूसरे ही दिन महल के परकोटे में लगी फुलवारी के मध्य गिरधर गोपाल के लिए मन्दिर का निर्माण आरम्भ हो गया ।

एक दिन मीरा अपने गिरधर की पूजा से निवृत्त हो माँ के पास बैठी थीं तो अचानक बाहर से आने वाले संगीत से उसका ध्यान बंट गया ।वह झट से बाहर झरोखे से देखने लगी । भाबू! यह इतने लोग सज धज करके गाजे बाजे के साथ कहाँ जा रहे है ?
यह तो बारात आई है बेटा ! यह उत्तर देते माँ की आँखों में सौ सौ सपने तैर उठे ।बारात क्या होती है भाबू! यह इतने गहने पहन कर हाथी पर कौन बैठा है ? यह तो बींद (दूल्हा ) है बेटी ।बहू को ब्याहने जा रहा है ।अपने नगर सेठ जी की बेटी से विवाह होगा ।माँ ने दूल्हे की तरफ देखते हुये कहा ।

सभी बेटियों के वर होते है क्या ? सभी से ब्याह करने बींद आते है ? मीरा ने पूछा । हाँ बेटा ! बेटियों को तो ब्याहना ही पड़ता है ।बेटी बाप के घर में नहीं खटती ।चलो, अब नीचे चले ।माँ ने मीरा को झरोखे से उतारने का उपक्रम किया ।
मीरा ने अपनी ही धुन में मग्न कहा , तो मेरा बींद कहाँ है भाबू ?
तेरा वर? माँ हँस पड़ी । मैं कैसे जानूँ बेटी कि तेरा वर कहाँ है , जहाँ के विधाता ने लेख लिखे होंगे , वहीं जाना पड़ेगा ।
मीरा उछल कर दूर खड़ी हो गई और ज़िद करती हुईं बोली , आप मुझे बताइये मेरा वर कौन है ?उसकी आँखों में आँसू भर आये थे । माँ मीरा की ऐसी ज़िद देख आश्चर्य में पड़ गई और बात बनाते हुये बोली ,बड़ी माँ से याँ अपने बाबोसा से पूछना ।
नहीं मैं किसी से नहीं पूछुँगी, बस आप ही मुझे बतलाईये मीरा रोते रोते भूमि पर लोट गई ।

माँ ने मीरा को मनाते हुए उठाया और बोली , अच्छा मैं बताती हूँ तेरा वर ।तू रो मत ।इधर देख , ये कौन है ? ये ? ये तो मेरे गिरधर गोपाल है । अरी पागल ,यही तो तेरे वर है ।उठ, कब से एक ही बात की रट लगाई है माँ ने बहलाते हुये कहा ।
क्या सच बाभू ?,सुख भरे आश्चर्य से मीरा ने पूछा । सच नहीं तो क्या झूठ है ?चल मुझे देर हो रही है ।
मीरा ने गिरधर की तरफ़ ऐसे देखा , मानों आज उन्हें पहली बार ही देखा हो, ऐसे चाव और आश्चर्य से देखने लगी ।मीरा रोना भूल गई ।माँ का सहज ही कहा एक एक शब्द उसकी नियति भी थी और जीने के लिये सम्बल और आश्वासन भी ।

नमो राघवाय

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही सुंदर सजीव वर्णन!!!
    पूरा घटनाक्रम आँखों के सामने छा गया!!
    वाह!!
    🙏🏻🌹जय मीरा बाईसा🌹🙏🏻
    🙏🏻🌹जय गिरधर गोपाल🌹🙏🏻

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