शनिवार, 23 सितंबर 2017

मीरा चरित्र - भाग १०

॥जय श्री राम॥

ऐसे ही उस दिन मीरा गिरधर की सेवा पूजा कर बैठी ही थी कि गंगा ने बताया कि दूदाजी ने आपको याद फरमाया है ।मीरा ने जाकर देखा तो उनके पलंग के पास पाँचों पुत्र , दीवान जी, राजपुरोहित और राजवैद्यजी सब वहीं थे । सहसा आँखें खोल कर दूदाजी ने पुकारा , मीरा.।

जी मैं हाजिर हूँ बाबोसा । मीरा उनके पास आ बोली ।

मीरा भजन गाओ बेटी ! मीरा ने ठाकुर जी की भक्त वत्सलता का एक पद गाया ।पद पूरा होने पर दूदाजी ने चारभुजानाथ के दर्शन की इच्छा प्रकट की ।तुरन्त पालकी मंगवाई गई ।उन्हें पालकी में पौढ़ा कर चारों पुत्र कहार बने ।वीरमदेव जी छत्र लेकर पिताजी के साथ चले ।दो घड़ी तक दर्शन करते रहे ।पुजारी जी ने चरणामृत , तुलसी माला और प्रसाद दिया ।वहाँ से लौटते श्याम कुन्ज में गिरधर गोपाल के दर्शन किए और मन ही मन कहा , अब चल रहा हूँ स्वामी ! अपनी मीरा को संभाल लेना प्रभु ।

महल में वापिस लौट कर थोड़ी देर आँखें मूंद कर लेटे रहे ।
फिर अपनी तलवार वीरमदेव जी को देते हुये कहा, प्रजा की रक्षा का और राज्य के संचालन का पूर्ण दायित्व तुम्हारे सबल स्कन्ध वाहन करे । मीरा और जयमल को पास बुला कर आशीर्वाद देते हुये कहने लगे, प्रभु कृपा से, तुम दोनों के शौर्य व भक्ति से मेड़तिया कुल का यश संसार में गाया जायेगा ।भारत की भक्त माल में तुम दोनों का सुयश पढ़ सुनकर लोग भक्ति और शौर्य पथ पर चलने का उत्साह पायेंगे ।उनकी आँखों से मानों आशीर्वाद स्वरूप आँसू झरने लगे ।

वीरमदेव जी ने दूदाजी से विनम्रता से पूछा , आपकी कोई इच्छा हो तो आज्ञा दें । बेटा ! सारा जीवन संत सेवा का सौभाग्य मिलता रहा ।अब संसार छोड़ते समय बस संत दर्शन की ही लालसा है ।पर यह तो प्रभु के हाथ की बात है ।वीरमदेव जी ने उसी समय पुष्कर की ओर सवार दौड़ाये संत की खोज में ।मीरा आज्ञा पाकर गाने लगी

नहीं ऐसो जनम बारम्बार ।
क्या जानूँ कुछ पुण्य प्रगटे मानुसा अवतार॥
बढ़त पल पल घटत दिन दिन जात न लागे बार।
बिरछ के ज्यों पात टूटे लगे नहिं पुनि डार॥
भवसागर अति जोर कहिये विषम ऊंडी धार।
राम नाम का बाँध बेड़ा उतर परले पार॥
ज्ञान चौसर मँडी चौहटे सुरत पासा सार।
या दुनिया में रची बाजी जीत भावै हार॥
साधु संत मंहत ज्ञानी चलत करत पुकार।
दास मीरा लाल गिरधर जीवणा दिन चार ॥

पद पूरा करके मीरा ने अभी तानपुरा रखा ही था कि द्वारपाल ने आकर निवेदन किया- अन्नदाता ! दक्षिण से श्री चैतन्यदास नाम के संत पधारे है । उसकी बात सुनने ही दूदाजी एकदम चैतन्य हो गये ।मानो बुझते हुए दीपक की लौ भभक उठी हो ।आँख खोल कर उन्होंने संत को सम्मान से पधराने का संकेत किया ।सब राजपुरोहित जी के साथ उनके स्वागत के लिया बढ़े ही थे कि द्वार पर गम्भीर और मधुर स्वर सुनाई दिया .. राधेश्याम ..!

मीरा के दूदाजी , परम वैष्णव भक्त आज अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर है ।लगभग समस्त परिवार उनके कक्ष में जुटा हुआ है- पर उन्हें लालसा है कि मैं संसार छोड़ते समय संत दर्शन कर पाऊँ ।उसी समय द्वार से मधुर स्वर सुनाई दिया. राधेश्याम !
दूदाजी में जैसे चेतना लौट आई ।सब की दृष्टि उस ओर उठ गई ।मस्तक पर घनकृष्ण केश, भाल पर तिलक , कंठ और हाथ तुलसी माला से विभूषित , श्वेत वस्त्र , भव्य मुख वैष्णव संत के दर्शन हुए ।संत के मुख से राधेश्याम , यह प्रियतम का नाम
सुनकर उल्लसित हो मीरा ने उन्हें प्रणाम किया ।फिर दूदाजी से बोली , आपको संत- दर्शन की इच्छा थी न बाबोसा ? देखिये , प्रभु ने कैसी कृपा की ।

संत ने मीरा को आशीर्वाद दिया और परिस्थिति समझते हुये स्वयं दूदाजी के समीप चले गये ।बेटों ने संकेत पा पिता को सहारे से बिठाया । प्रणाम कर बोले , कहाँ से पधारना हुआ महाराज ? मैं दक्षिण से आ रहा हूँ राजन ।नाम चैतन्यदास है ।कुछ समय पहले गौड़ देश के प्रेमी सन्यासी श्री कृष्ण चैतन्य तीर्थाटन करते हुये मेरे गाँव पधारे और मुझ पर कृपा कर श्री वृंन्दावन जाने की आज्ञा की ।

श्री कृष्ण चैतन्य सन्यासी हो कर भी प्रेमी है महाराज ? मीरा ने उत्सुकता से पूछा ।

संत बोले , यों तो उन्होंने बड़े बड़े दिग्विजयी वेदान्तियों को भी पराजित कर दिया है, परन्तु उनका सिद्धांत है कि सब शास्त्रों का सार भगवत्प्रेम है और सब साधनों का सार भगवान का नाम है ।त्याग ही सुख का मूल है ।तप्तकांचन गौरवर्ण सुन्दर सुकुमार देह, बृजरस में छके श्रीकृष्ण चैतन्य का दर्शन करके लगता है मानो स्वयं गौरांग कृष्ण ही हो ।वे जाति -पाति, ऊँच-नीच नहीं देखते । हरि को भजे सो हरि का होय  मानते हुए सबको हरि  नामामृत का पान कराते है ।अपने ह्रदय के अनुराग का द्वार खोलकर सबको मुक्त रूप से प्रेमदान करते है । इतना कहते कहते उनका कंठ भाव से भर आया ।

मीरा और दूदाजी दोनों की आँखें इतना रसमय सत्संग पाकर
आँसुओं से भर आई ।फिर संत कहने लगे , मैं दक्षिण से पण्डरपुर आया तो वहाँ मुझे एक वृद्ध सन्यासी केशवानन्द जी मिले । जब उन्हें ज्ञात हुआ कि मैं वृन्दावन जा रहा हूँ तो उन्होंने मुझे एक प्रसादी माला देते हुये कहा कि तुम पुष्कर होते हुये मेड़ते जाना और वहां के राजा दूदाजी राठौड़ को यह माला देते हुये कहना कि वे इसे अपनी पौत्री को दे दें ।पण्डरपुर से चल कर मैं पुष्कर आया और देखिए प्रभु ने मुझे सही समय पर यहां पहुँचा दिया ।

ऐसा कह संत ने अपने झोले से माला निकाल दूदाजी की ओर बढ़ाई । दूदाजी ने संकेत से मीरा को उसे लेने को कहा ।उसने बड़ी श्रद्धा और प्रसन्नता से उसे अंजलि में लेकर उसे सिर से लगाया ।दूदाजी लेट गये और कहने लगे केशवानन्द जी मीरा के जन्म से पूर्व पधारे थे ।उन्हीं के आशीर्वाद का फल है यह मीरा ।महाराज आज तो आपके रूप में स्वयं भगवान पधारे हैं ।यों तो सदा ही संतों को भगवत्स्वरूप समझ कर जैसी बन पड़ी , सेवा की है , किन्तु आज महाप्रयाण के समय आपने पधार कर मेरा मरण भी सुधार दिया । उनके बन्द नेत्रों की कोरों से आँसू झरने लगे ।

पर ऐसे कर्तव्य परायण और वीर पुत्र , फुलवारी सा यह मेरा परिवार , भक्तिमति पौत्री मीरा, अभिमन्यु सा पौत्र जयमल -ऐसे भरे-पूरे परिवार को छोड़कर जाना मेरा सौभाग्य है । फिर बोले , मीरा !

हकम बाबोसा !! जाते समय एक भजन तो सुना दे बेटा ! मीरा ने आज्ञा पा तानपुरा उठाया और गाने लगी ..

मैं तो तेरी शरण पड़ी रे रामा,
ज्यूँ जाणे सो तार ।
अड़सठ तीरथ भ्रमि भ्रमि आयो,
मन नहीं मानी हार ।
या जग में कोई नहीं अपणा ,
सुणियो श्रवण कुमार ।
मीरा दासी राम भरोसे ,
जम का फेरा निवार ।

मधुर संगीत और भावमय पद श्रवण करके चैतन्य दास स्वयं को रोक नहीं पाये धन्य ,धन्य हो मीरा ।तुम्हारा आलौकिक प्रेम, संतों पर श्रद्धा , भक्ति की लगन, मोहित करने वाला कण्ठ, प्रेम रस में पगे यह नेत्र इन सबको तो देख लगता है मानो
तुम कोई ब्रजगोपिका हो ।वे जन भाग्यशाली होंगे जो तुम्हारी इस भक्ति -प्रेम की वर्षा में भीगकर आनन्द लूटेंगें ।धन्य है आपका यह वंश ,जिसमें यह नारी रत्न प्रकट हुआ ।

मीरा ने सिर नीचा कर प्रणाम किया और अतिशय विनम्रता से बोली , कोई अपने से कुछ नहीं होता महाराज  । संत कुछ आहार ले चलने को प्रस्तुत हुए ।रात्रि बीती ।दूदाजी का अंतर्मन चैतन्य था पर शरीर शिथिल हो रहा था ।

ब्राह्म मुहूर्त में मीरा ने दासियों के साथ धीमे धीमे संकीर्तन आरम्भ किया ।

जय चतुर्भुजनाथ दयाल ।
जय सुन्दर गिरधर गोपाल ॥

उनके मुख से अस्फुट स्वर निकले-- प्रभु ..पधार.रहे है.. । ज..य ..हो ।पुरोहित जी ने तुलसी मिश्रित चरणामृत दिया।


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आगामी अंकों में जारी
नमो राघवाय

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही भावुक प्रसंग!!
    🙏🏻🌹जय गिरधर गोपाल🌹🙏🏻
    🙏🏻🌹जय मीरा बाइसा🌹🙏🏻

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