रविवार, 17 सितंबर 2017

मीरा चरित्र - भाग ४

॥जय श्री राम॥

मीरा की भक्ति और भजन में बढ़ती रूचि देखकर रनिवास में चिन्ता व्याप्त होने लगी । एक दिन वीरमदेव जी (मीरा के सबसे बड़े काका ) को उनकी पत्नी श्री गिरिजा जी ने कहा , मीरा दस वर्ष की हो गई है ,इसकी सगाई  सम्बन्ध की चिन्ता नहीं करते आप ? वीरमदेव जी बोले , चिन्ता तो होती है पर मीरा का व्यक्तित्व , प्रतिभा और रूचि असधारण है फिर बाबोसा मीरा के ब्याह के बारे में कैसा सोचते हैपूछना पड़ेगा । बेटी की रूचि साधारण हो याँ असधारण  पर विवाह तो करना ही पड़ेगा  बड़ी माँ ने कहा । पर मीरा के योग्य कोई पात्र ध्यान में हो तो ही मैं अन्नदाता हुक्म से बात करूँ । एक पात्र तो मेरे ध्यान में है । मेवाड़ के महाराज कुँवर और मेरे भतीजे भोजराज । क्या कहती हो , हँसी तो नहीं कर रही ? अगर ऐसा हो जाये तो हमारी बेटी के भाग्य खुल जाये ।वैसे मीरा है भी उसी घर के योग्य । प्रसन्न हो वीरमदेव जी ने कहा । गिरिजा जी ने अपनी तरफ़ से पूर्ण प्रयत्न करने का आश्वासन दिया ।

मीरा की सगाई की बात मेवाड़ के महाराज कुंवर से होने की चर्चा रनिवास में चलने लगी । मीरा ने भी सुना । वह पत्थर की मूर्ति की तरह स्थिर हो गई थोड़ी देर तक । वह सोचने लगी -माँ ने ही बताया था कि तेरा वर गिरधर गोपाल है-और अब माँ ही मेवाड़ के राजकुमार के नाम से इतनी प्रसन्न है , तब किससे पूछुँ ? वह धीमे कदमों से दूदाजी के महल की ओर चल पड़ी ।

पलंग पर बैठे दूदाजी जप कर रहे थे ।मीरा को यूँ अप्रसन्न सा देख बोले , क्या बात है बेटा ? बाबोसा ! एक बेटी के कितने बींद होते है ? दूदाजी ने स्नेह से मीरा के सिर पर हाथ रखा और हँस कर बोले , क्यों पूछती हो बेटी ! वैसे एक बेटी के एक ही बींद होता है ।एक बींद के बहुत सी बीनणियाँ तो हो सकती है पर किसी भी तरह एक कन्या के एक से अधिक वर नहीं होते ।पर क्यों ऐसा पूछ रही हो ?

बाबोसा ! एक दिन मैंने बारात देख माँ से पूछा था कि मेरा बींद कौन है ? उन्होंने कहा कि तेरा बींद गिरधर गोपाल है । और आज आज । उसने हिलकियों के साथ रोते हु ए अपनी बात पूरी करते हुये कहा- आज भीतर सब मुझे मेवाड़ के राजकुवंर को ब्याहने की बात कर रहे है ।

दूदाजी ने अपनी लाडली को चुप कराते हुए कहा- तूने भाबू से
पूछा नहीं ? पूछा ! तो वह कहती है कि- वह तो तुझे बहलाने के लिए कहा था । पीतल की मूरत भी कभी किसी का पति होती है ? अरी बड़ी माँ के पैर पूज । यदि मेवाड़ की राजरानी बन गई तो भाग्य खुल गया समझ । आप ही बताईये बाबोसा ! मेरे गिरधर क्या केवल पीतल की मूरत है ? संत ने कहा था न कि यह विग्रह (मूर्ति) भगवान की प्रतीक है । प्रतीक वैसे ही तो नहीं बन जाता ? कोई हो , तो ही उसका प्रतीक बनाया जा सकता है ।जैसे आपका चित्र कागज़ भले हो , पर उसे कोई भी देखते ही कह देगा कि यह दूदाजी राठौड़ है । आप है , तभी तो आपका चित्र बना है ।यदि गिरधर नहीं है तो फिर उनका प्रतीक कैसा ?

भाबू कहती है-भगवान को किसने देखा है ? कहाँ है ? कैसे है ? मैं कहती हूँ बाबोसा वो कहीं भी हों , कैसे भी हो , पर हैं , तभी तो मूरत बनी है , चित्र बनते है ।ये शास्त्र , ये संत सब झूठे है क्या ? इतनी बड़ी उम्र में आप क्यों राज्य का भार बड़े कुंवरसा पर छोड़कर माला फेरते है ? क्यों मन्दिर पधारते है ? क्यों सत्संग करते है ? क्यों लोग अपने प्रियजनों को छोड़ कर उनको पाने के लिए साधु हो जाते है ? बताईये न बाबोसा - मीरा ने रोते रोते कहा ।

राव दूदाजी अपनी दस वर्ष की पौत्री मीरा की बातें सुनकर चकित रह गये ।कुछ क्षण तो उनसे कुछ बोला नहीं गया ।आप
कुछ तो कहिये बाबोसा ! मेरा जी घबराता है ।किससे पूछुँ यह सब ? भाबू ने पहले मुझे क्यों कहा कि गिरधर ही मेरे वर है और अब स्वयं ही अपने कहे पर पानी फेर रही है ? जो हो ही नहीं सकता , उसका क्या उपाय ? आप ही बताईये -क्या तीनों लोको के धणी (स्वामी) से भी बड़ा मेवाड़ का राजकुमार है ? और यदि है तो होने दो , मुझे नहीं चाहिए । तू रो मत बेटा !
धैर्य धर !उन्होने दुपट्टे के छोर से मीरा का मुँह पौंछा -तू चिन्ता मत कर ।मैं सबको कह दूँगा कि मेरे जीते जी मीरा का विवाह नहीं होगा तेरे वर गिरधर गोपाल हैं और वही रहेंगे , किन्तु मेरी लाड़ली ! मैं बूढ़ा हूँ । कै दिन का मेहमान ? मेरे मरने के पश्चात यदि ये लोग तेरा ब्याह कर दें तो तू घबराना मत । सच्चा पति तो मन का ही होता है । तन का पति भले कोई बने , मन का पति ही पति है । गिरधर तो प्राणी मात्र का धणी है , अन्तर्यामी है उनसे तेरे मन की बात छिपी तो नहीं है बेटा ।तू निश्चिंत रह । सच फरमा रहे है , बाबोसा ? सर्व साँची बेटा । तो फिर मुझे तन का पति नहीं चाहिए ।मन का पति ही पर्याप्त है ।दूदाजी से आश्वासन पाकर मीरा के मन को राहत मिली ।

दूदाजी के महल से मीरा सीधे श्याम कुन्ज की ओर चली ।कुछ क्षण अपने प्राणाराध्य गिरधर गोपाल की ओर एकटक देखती रही  ।फिर तानपुरा झंकृत होने लगा आलाप लेकर वह गाने लगी
आओ मनमोहना जी, जोऊँ थाँरी बाट ।
खान पान मोहि नेक न भावे,नैणन लगे कपाट॥
तुम आयाँ बिन सुख नहीं मेरेेेे,दिल में बहुत उचाट ।
मीरा कहे मैं भई रावरी, छाँड़ो नाहिं निराट॥

भजन पूरा हुआ तो अधीरतापूर्वक नीचे झुक कर दोनों भुजाओं में सिंहासन सहित अपने ह्रदयधन को बाँध चरणों में सिर टेक दिया नेत्रों से झरते आँसू उनका अभिषेक करने लगे । ह्रदय पुकार रहा था-आओ सर्वस्व ! इस तुच्छ दासी की आतुर प्रतीक्षा सफल कर दो ।आज तुम्हारी साख और प्रतिष्ठा दाँव पर लगी है ।

उसे फूट फूट कर रोते देख मिथुला ने धीरज धराया ।कहा कि, प्रभु तो अन्तर्यामी है , आपकी व्यथा इनसे छिपी नहीं है । मिथुला ,तुम्हें लगता है वे मेरी सुध लेंगे ? वे तो बहुत बड़े है  ।मेरी क्या गिनती ? मुझ जैसे करोड़ों जन बिलबिलाते रहते है । किन्तु मिथुला ! मेरे तो केवल वही एक अवलम्ब है ।न सुने, न आयें , तब भी मेरा क्या वश है ? मीरा ने मिथुला की गोद में मुँह छिपा लिया ।

पर आप क्यों भूल जाती है बाईसा कि वे भक्तवत्सल है , करूणासागर है , दीनबन्धु है ।भक्त की पीड़ा वे नहीं सह पाते -दौड़े आते है । किन्तु मैं भक्त कहाँ हूँ मिथुला ? मुझसे भजन बनता ही कहाँ है ? मुझे तो केवल वह अच्छे लगते है ।वे मेरे पति हैं -मैं उनकी हूँ ।वे क्या कभी अपनी इस दासी को अपनायेगें ? उनके तो सोलह हज़ार एक सौ आठ पत्नियाँ है उनके बीच मेरी प्रेम हीन रूखी सूखी पुकार सुन पायेंगे क्या ? तुझे क्या लगता है मिथुला ! वे कभी मेरी ओर देखेंगे भी क्या ? मीरा अचेत हो मिथुला की गोद में लुढ़क गई ।

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आगामी अंकों में जारी
नमो राघवाय

1 टिप्पणी:

  1. भाव विह्वल कर देने वाला वर्णन!! 😢
    🙏🏻🌹जय मीरा बाईसा🌹🙏🏻
    🙏🏻🌹जय गिरधर गोपाल🌹🙏🏻

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